छत्तीसगढ़ में तबादला सूची जारी होने के बाद इसमें लग रहा गड़बड़ी और नियमों को ताक पर रखकर लोगों का तबादला किये जाने का आरोप
राजस्व विभाग में जिस तरह हाई कोर्ट द्वारा अधिकारियों को स्टे दिया गया है, उससे पूरे तबादले ही सवालों के घेरे में
राज्य शासन ने विगत 13 सितंबर को 49 तहसीलदार और 51 नायब तहसीलदारों की जारी किया था तबादला सूची
राज्य शासन के राजस्व एवं आपदा प्रबंधन विभाग मंत्रालय द्वारा दो सप्ताह पूर्व किये गए तहसीलदारों के तबादले को लेकर उठा विवाद अब तक नहीं थमा है। तबादला सूची जारी होने के ठीक बाद इसमें गड़बड़ी और नियमों को ताक पर रखकर लोगों का तबादला किये जाने के आरोप लगने लगे। इस मुद्दे को लेकर आरोप लगाने वाले तहसीलदारों के संगठन के अध्यक्ष को शासन ने उसे निलंबित कर दिया था, मगर जिस तरह से तहसीलदारों को तबादले पर धड़ाधड़ स्टे मिल रहा है, उससे यह आशंका प्रबल हो रही है कि जिम्मेदार लोगों ने मनमाने तरीके से तबादले किये हैं।
विदित हो कि राज्य शासन ने विगत 13 सितंबर को 49 तहसीलदार और 51 नायब तहसीलदारों की तबादला सूची जारी की, तब तहसीदारों ने सीधे प्रदेश के राजस्व मंत्री टंक राम वर्मा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। इनके संगठन कनिष्ठ प्रशासनिक सेवा संघ ने मंत्री के ऊपर पैसों का लेनदेन करके तबादले करने का आरोप लगा डाला। साथ ही तबादलों के खिलाफ कोर्ट जाने की चेतावनी भी दे डाली। हालांकि यह आरोप लगाने वाले संघ के अध्यक्ष नीलमणी दुबे को शासन ने निलंबित करने का आदेश जारी कर दिया। निलंबित किए गये नीलमणि दुबे के निलंबन आदेश में लिखा गया है कि 13 सितंबर को तहसीलदार और नायब तहसीलदारों का ट्रांसफर किया गया, इन तबादलों को लेकर नीलमणि दुबे ने मीडिया में बिना शासन की अनुमति लिए सरकार के खिलाफ बयानबाजी की, पत्र में ये भी लिखा गया कि तहसीलदार का ये आचरण छत्तीसगढ़ सिविल सेवा आचरण नियम के खिलाफ है, नियमों का उल्लंघन है, इसलिए राज्य शासन नीलमणि दुबे तहसीलदार को छत्तीसगढ़ सिविल सेवा वर्गीकरण नियम के तहत दोषी पाती है, तत्काल प्रभाव से निलंबित करती है।
राजस्व मंत्रालय के जिम्मेदार पदों पर बैठे जिन अधिकारियों ने तबादला सूची जारी की, उसमें काफी गड़बड़ियां थी, और पहली नजर में ही ऐसे तबादलों पर स्टे मिलने की प्रबल संभावना थी। इसमें कई नायब तहसीलदार ऐसे थे जिन्हें प्रोबेशन पीरियड में ही तबादले पर भेज दिया गया। इसके आलावा कई ऐसे तहसीलदार थे जिन्हे पूर्व में तबादले पर भेजे साल-दो साल भी नहीं हुआ था, जबकि शासकीय नियमों के तहत किसी भी तबादले के 3 वर्ष के बाद ही दोबारा स्थानांतरण करने का प्रावधान है। कनिष्ठ प्रशासनिक सेवा संघ के अध्यक्ष नीलमणी दुबे खुद इसका शिकार हुए। उन्हें बलौदा बाजार जिले में ही 4 बार तबादले पर यहां से वहां भेजा गया और पांचवीं बार उनका तबादला मोहला मानपुर कर दिया गया। इसी तरह जिलों से बाहर भेजे गए तहसीलदारों के मुकाबले उस जिले में कम तहसीलदारों को पदस्थापना की गई। इस तरह की खामियों के चलते प्रदेश भर से कई तहसीलदार और नायब तहसीलदार हाई कोर्ट की शरण में चले गए।
हाई कोर्ट में तहसीलदारों ने अलग-अलग प्रकरण में अपना पक्ष रखा और इनमें से अब तक 18 से भी अधिक तहसीलदारों को कोर्ट से यथास्थिति बनाये रखने का आदेश दिया जा चुका है। इस संबंध जानकारी मिली है, उसके मुताबिक अभिषेक राठौर बिलासपुर, नीलमणि दुबे, बलौदा बाजार, पेखन टोंडरे, बलौदा बाजार, प्रेरणा सिंह रायपुर, राजकुमार साहू रायपुर, राकेश देवांगन रायपुर, जयेंद्र सिंह रायपुर, राजकुमार साहू, रायपुर, प्रियंका बंजारा जांजगीर-चांपा, प्रियंका टोप्पो, गुरु दत्त पंचभाई दुर्ग, सरिता मढ़रिया बेमेतरा, नायब तहसीलदार दीपक चंद्राकर बालोद, विपिन बिहारी पटेल, तिल्दा, रायपुर, कमलवाती, माया अंचल बिलासपुर, दीपक चंद्राकर, देवेंद्र नेताम पलारी, विवेक पटेल, सुकमा शामिल हैं जिनके तबादले पर कोर्ट ने स्टे लगा दिया है।
हाई कोर्ट ने स्टे पाने वाले अधिकारियों को आदेश दिया है कि वे शासन के समक्ष अभ्यावेदन प्रस्तुत करें। इन्हें चार हफ्ते से लेकर 45 दिनों का समय दिया गया है। वहीं शासन को आदेश दिया गया है कि इनके अभ्यावेदन पर विचार करने के लिए कमेटी का गठन किया जाये, जो इस बात की समीक्षा करेगी कि इनके तबादले नियम के तहत किये गए हैं या नहीं। फ़िलहाल ये सभी अपने मूल स्थान पर पदस्थ रहेंगे।
इधर तबादले पर स्टे मिलने के बाद कनिष्ठ प्रशासनिक सेवा संघ ने राजस्व मंत्रालय के सचिव अविनाश चम्पावत को एक ज्ञापन सौंपा है, जिसमें संघ के अध्यक्ष नीलमणी दुबे के विरूद्ध किये गए निलंबन को खत्म करने का अनुरोध किया गया है। बता दें कि जिन अधिकारियों को स्टे मिला है, उनमें नीलमणी दुबे भी शामिल हैं।
राजस्व विभाग में जिस तरह हाई कोर्ट द्वारा अधिकारियों को स्टे दिया गया है, उससे पूरे तबादले ही सवालों के घेरे में आ गए हैं। सच तो यह है कि इन तबादलों के पहले ही राजस्व मंत्री तक पहुंच बताने वाले बिचौलिया नुमा लोगो ने पैसे के बूते मनचाहे स्थानों पर तबादला किये जाने का ठेका लेना शुरू कर दिया था। हुआ भी वही, बड़ी संख्या में अधिकारियों को उनकी इच्छा के मुताबिक जिले मिले, मगर इन्हें सेट करने के चक्कर में नियम विरुद्ध तरीके से संबंधित स्थानों में पदस्थ अधिकारियों को छांट-छांट कर दूसरे जिलों में तबादले पर भेज दिया गया। मगर ऐसा लगता है कि जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों और अफसरों को इस बात का अंदाजा ही नहीं था कि अदालत ऐसी जगह है जो न्याय की चौखट है और शासन ने अगर अपने सेवकों के साथ गलत किया है तो उन्हें यहां से न्याय जरूर मिलेगा।
विपक्ष ने भी बनाया था मुद्दा
तहसीलदार नीलमणि दुबे के बयान के बाद राज्य सरकार की बड़ी किरकिरी हुई थी। विपक्ष ने भी इस मुद्दे को पुरजोर तरीके से उठाया था। साथ ही कई गंभीर आरोप भी लगाए थे । सरकार की हो रही बदनामी और जनता के बीच किरकिरी को देखते हुए राज्य सरकार ने अब इस मामले में एक्शन लेते हुए तत्काल प्रभाव से तहसीलदार नीलमणि दुबे को निलंबित कर दिया है। हालांकि, उनका जिला मुख्यालय मोहला मानपुर अंबागढ़ चौकी रखा गया है, जहां पर उनको वर्तमान में बलौदा बाजार के सिमगा तहसील से तबादला किया गया था।
छत्तीसगढ़ में इस बार दूसरे भी कई विभागों में तबादला आदेश जारी किया गया है, वहां भी इसी तरह से अधिकांश लोग प्रभावित हुए हैं जिन्हें कायदों को ताक पर रखकर तबादला कर दिया गया है। स्वास्थ्य विभाग इसका सबसे बड़ा उदहारण है, जहां जूनियर मेडिकल अफसरों को CMHO के पद पर तबादला कर दिया गया और मोस्ट सीनियर डॉक्टरों को CMHO के पद से हटाते हुए उन्हीं जिला अस्पतालों में विशेषज्ञ बनाकर पदस्थ कर दिया गया। ऐसे कई वरिष्ठ डॉक्टर भी हैं, जिनका रिटायरमेंट 4 महीने से लेकर साल भर के भीतर होना है, इन्हें भी CMHO की कुर्सी से हटा दिया गया। ऐसे डॉक्टर हाई कोर्ट की शरण में चले गए। TRP न्यूज़ को मिली जानकारी के मुताबिक अब तक ऐसे 9 वरिष्ठ डॉक्टरों के तबादले पर कोर्ट ने स्टे लगा दिया दिया।