छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य विभाग के आदेश ने डॉक्टरों का बढ़ाया सिरदर्द, 50 से अधिक डॉक्टर एकमुश्त इस्तीफा देने की तैयारी में
नये नियम के तहत शासकीय अस्पतालों में कार्यरत डॉक्टर निजी अस्पताल या क्लीनिक में सेवा नहीं दे सकते
हमारी बातचीत चल रही है और हम बीच का रास्ता निकालेंगे:- स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल
मोटी कमाई का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं डॉक्टर
छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य विभाग के एक आदेश ने डॉक्टरों का सिरदर्द बढ़ा दिया है, जिससे शासकीय अस्पतालों में सेवा देने से मोहभंग हो रहा है। अस्पतालों में सेवा दे रहे डॉक्टर्स लगातार इस्तीफा दे रहे हैं। बुधवार को राजनंदगांव में डाक्टर्स सामूहिक इस्तीफा दे चुके है। मालूम हो, सरकार की सख्ती से नाराज होकर पिछले 10 दिनों में 2 जिले में 35 डॉक्टर्स अब तक इस्तीफा दे चुके हैं। रायपुर के डीकेएस सुपरस्पेशलिटी अस्पताल के बाद, बिलासपुर, रायगढ़, दुर्ग और राजनांदगांव मेडिकल कॉलेज के 50 से अधिक डॉक्टर इस्तीफा देने की तैयारी में हैं। इस प्रक्रिया की शुरुआत दुर्ग मेडिकल कॉलेज से हो चुकी है।
शासन के नए नियम से नाराज पेंड्री स्थित मेडिकल कॉलेज अस्पताल में कार्यरत 20 डॉक्टरों ने डीन को सामूहिक इस्तीफा सौंप दिया है। डॉक्टरों ने शासन नियमों का उल्लेख करते हुए अपनी समस्याएं व मांग पत्र दिया है। पूरी नहीं होने पर त्यागपत्र देने बाध्य होने की बात कही गई है। एकमुश्त इतने सारे डॉक्टरों के इस्तीफे से चिकित्सा विभाग में हड़कंप मच गया है। इन 20 डॉक्टरों में सभी सीनियर, जूनियर व संविदा के अलावा नियमित डॉक्टर भी शामिल हैं। इन सब डॉक्टरों के नौकरी छोड़ने से मेडिकल कॉलेज अस्पताल में चिकित्सा व्यवस्था पूरी तरह चरमरा जाएगी। कॉलेज में पढ़ाई भी प्रभावित होगा, क्योंकि इनमें से कई डॉक्टर प्रोफेसर भी हैं। यह इस्तीफा डीन को दिया गया है, लेकिन डीन इसे स्वीकार करने के लिए अधिकृत नहीं है। इसे ऊपर भेजा जाएगा और शासन से जो भी दिशा निर्देश दिए जाएंगे, उसके आधार पर कार्य किया जाएगा।
मेडिकल कॉलेज टीचर्स एसोसिएशन भी सरकार के फैसले के विरोध में उतर आया है। एसोसिएशन ने कहा कि यह फैसला सही नहीं है। कैसे कोई स्पेशलिस्ट, सुपरस्पेशलिस्ट डॉक्टर अपने घर प्रैक्टिस कर सकता है। एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. अरविंद नेरल का कहना है कि बहुत जल्द डॉक्टरों का प्रतिनिधिमंडल डीएमई और मंत्री से मुलाकात करके डॉक्टरों का पक्ष रखेगा।
बता दें कि शासकीय अस्पतालों में कसावट लाने के उद्देश्य से शासन द्वारा नया नियम लागू किया गया है। इसके तहत शासकीय अस्पतालों में कार्यरत डॉक्टर निजी अस्पताल या क्लीनिक में सेवा नहीं दे सकते।
इन बिंदुओं को रखा
ऐनस्थिसिया, पैथोलॉजिस्ट, रेडियोलॉजिस्ट अपने घर पर प्रैक्टिस नहीं कर सकते।
स्त्री रोग विशेषज्ञ अपने निवास में प्रसव नहीं करा सकता। शल्य क्रिया नहीं कर सकता।
कोई भी सर्जन, ऑर्थोपेडिशियन, ईएनटी सर्जन, नेत्र सर्जन अपने निवास पर सर्जिकल प्रक्रियाएं नहीं कर सकता।
शिशु रोग विशेषज्ञ अपने निवास में मरीजों को भर्ती नहीं कर सकता।
मनोचिकित्सा और त्वचा विकृति विज्ञान जैसी शाखाओं की भी यही स्थिति होगी।
कोई भी व्यक्ति या डॉक्टर अपने आवास के लिए बायोेमेडिकल वेस्ट प्रबंधन के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से अनुमति कैसे लेगा।
घर पर क्लीनिक चलाने से परिवार के सभी सदस्यों के संक्रमित होने का खतरा रहेगा।
मरीज किसी भी समय निवास पर आ सकते हैं, समय अवधि का पालन नहीं होगा। मरीज देखना मजबूरी होगी, जिससे डॉक्टरों के लिए कानूनी मुद्दे पैदा हो सकते हैं।
इस विवाद के बीच भाजपा चिकित्सा प्रकोष्ठ के प्रतिनिधिमंडल ने स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल से मुलाकात की और डॉक्टरों के मुद्दे रखे। स्वास्थ्य मंत्री ने कहा- जो डॉक्टर एनपीए नहीं ले रहे है। उनकी प्रैक्टिस से अस्पताल में कोई व्यवधान नहीं हो रहा है, उन्हें पूर्व की तरह प्रैक्टिस की छूट होगी। हम आदेश की समीक्षा करेंगे।उन्होंने आगे कहा कि, यह सरकार की गाइडलाइन है और यह पुराना अधिनियम है। इस बात को लेकर संविदा डॉक्टर इस्तीफा दे रहे हैं, इस्तीफा देने वालों से बातचीत जारी है। हमारे पास डॉक्टरों की कमी है, ऐसी स्थिति में डॉक्टर इस्तीफा देंगे तो संकट पैदा होगा। हमारी बातचीत चल रही है और हम बीच का रास्ता निकालेंगे। इस भरोसे के बाद माना जा रहा है कि सरकार प्राइवेट प्रैक्टिस पर प्रतिबंध के नियम में बदलाव कर सकती है।
इस मामले को लेकर विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह ने कहा कि, सीएमएचओ और कलेक्टर सहित सभी उच्च अधिकारियों से बातचीत की गई है। अभी डॉक्टर ने इस्तीफा देने की मंशा जाहिर की है इस मामले में उनसे बातचीत की जा रही है। उनकी जो छोटी-मोटी मांगे हैं जो तत्काल यहां पूरी हो सकती है उन्हें पूरा किया जाएगा।
मोटी कमाई का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं डॉक्टर
इस्तीफा देने वाले ज्यादातर डॉक्टर अपना खुद का अस्पताल चला रहे हैं या उनसे जुड़े हुए हैं। शासकीय अस्पताल में सेवा देने के बाद वे यहां मोटी रकम कमा रहे हैं। शासकीय अस्पताल के मरीजों को भी यहां रेफर कर इलाज कर रहे हैं। शासन जनता के हित को ध्यान में रखते हुए ही यह फैसला ली है, ताकि लोगों को निजी अस्पताल में जाने की मजबूरी न हो। डॉक्टर निजी प्रैक्टिस करें, यदि उन्हें लगता है, कि किसी मरीज को भर्ती करने की जरूरत है, तो उन्हें शासकीय अस्पताल में दाखिला कराए।