छठव्रतियों ने आज अस्ताचलगामी सूर्य को दिया अर्घ, सुबह उदीयमान सूर्य की उपासना के साथ संपन्न होगा छठ महापर्व
व्रतियों के साथ साथ परिजन एवम अन्य लोग भी व्रतियों को पर्व की शुभकामनाएं देने व आशीर्वाद लेने छठ घाट पर पहुंचे
पत्थलगांव। पत्थलगांव में बड़े धूमधाम से छठ का पर्व मनाया जाता है। इस पर्व को मनाने के लिए कुछ दिनों पूर्व से ही घाटों में तैयारियां की जाती है। प्रतिवर्ष की भाँति इस वर्ष भी छठ पूजा का विशेष माहौल रहा। पूरन तालाब सहित किलकिला एवम भरारी नाला में छठ व्रतियों के द्वारा सूर्य देव को अर्घ्य दिया गया। बड़ी संख्या में छठव्रती दोपहर से ही अपने पूरे परिवार एवं गाजे-बाजे के साथ छठघाट पहुंचने का सिलसिला जारी रहा। इस दौरान घरों से लेकर घाटों तक भक्ति के गीत गूंजते रहे। दिन में छठी व्रतियों ने गेहूं, घी व शक्कर का ठेकुआ, चावल, घी और शक्कर का लड्डू प्रसाद के लिए बनाया। बांस के बने सूप डाला, दौरा, टोकरी में प्रसाद को रखा गया था। इसके साथ ही प्रसाद के रूप में सेब, केला, अमरूद, नींबू सहित अन्य फल प्रसाद के रूप में रखे गए थे। शाम को पूरे विधि-विधान से सूर्य देव की आराधना की गई। छठव्रतियों ने अस्ताचलगामी सूर्य एवं छठमाता की आराधना की। इस दौरान व्रतियों के परिजनों के साथ साथ अन्य लोग भी व्रतियों को पर्व की शुभकामनाएं देने व आशीर्वाद देने छठ घाटों पर पहुंचे। समिती के द्वारा लोगों की सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए अस्थायी घाट बनाए गये थे, जहां पूरे परिवार के साथ व्रती डूबते सूर्य को अर्घ्य देने पहुंचे। इस दौरान आतिशबाजियां और गाजे-बाजे से माहौल रंगीन रहा। घाट पर रंग बिरंगी झालरों से सजाया गया है। जिसने माहौल को और भी रंगीन बना दिया। लोगों की सेल्फी हेतु सेल्फ़ी पॉइन्ट भी बनाया गया है। वहीं पुलिस एवम प्रशासन भी लोगों की सुविधा एवम यातायात व्यवस्था को देखते हुवे घाटों में मुस्तैद नजर आई। यातायात व्यवस्था को देखते हुवे नगर में बड़ी वाहनों को प्रवेश बंद करा दिया था।
सूर्य देव की उपासना का यह पर्व शुद्धता, स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देने वाला है। सूर्य देव के साथ-साथ छठी मैया की पूजा का विधान है। इस व्रत में सूर्य और षष्ठी माता दोनों की उपासना होती है। इसलिए इसे सूर्यषष्ठी भी कहा जाता है। चार दिवसीय लोक आस्था का महापर्व छठ के दूसरे दिन बुधवार को व्रतधारियों ने दिन भर खरना का व्रत रखकर शाम को पूजा अर्चना के बाद प्रसाद ग्रहण किया। छठव्रतियों ने खीर व रोटी का प्रसाद ग्रहण किया। बाद में प्रसाद को घर के बाकी सदस्यों सहित आसपास के लोगों को भी खिलाया गया, जो देर तक चलता रहा। लोगों ने एक दूसरे के घरों में जाकर खरना का प्रसाद ग्रहण किया व भगवान भास्कर के प्रति अपना सिर झुकाकर उनकी आराधना की। खरना के बाद अर्घ की तैयारी शुरू होती है, गुरुवार को शाम में अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ दिया गया, इसके बाद रात में घरों में कोसी भर कर छठी मइया की आराधना की जाती है। शुक्रवार को उदीयमान सूर्य को अर्घ देने के साथ ही चार दिनों तक चलने वाला छठ पूजा संपन्न हो जायेगा।
मान्यता के अनुसार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन शाम के समय किसी तालाब या नदी में खड़े होकर व्रती डूबते हुए सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं। इसके पीछे यह मान्यता है कि डूबते समय सूर्य देव अपनी दूसरी पत्नी प्रत्यूषा के साथ में होते हैं। इस समय अर्घ्य देने से जीवन में चल रही हर समस्या दूर हो जाती है और सभी मनोकामना पूर्ण होती है। डूबते सूरज को अर्घ्य देने का मुख्य कारण यह बताया जाता है कि सूरज का ढलना जीवन के उस चरण को दर्शाता है, जब व्यक्ति की मेहनत और तपस्या के फल प्राप्ति का समय आता है। डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देने से जीवन में संतुलन, शक्ति और ऊर्जा बनी रहती है। डूबते सूर्य को अर्घ्य देना यह दर्शाता है कि जीवन में हर उत्थान के बाद पतन होता है, और हर पतन के बाद एक नया सवेरा होता है।