कृषि विज्ञान केन्द्र, डूमरबहार जशपुर में भगवान बलराम जयंती को किसान दिवस के रूप में मनाया गया

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कृषि विज्ञान केन्द्र, डूमरबहार जशपुर में भगवान बलराम जयंती को किसान दिवस के रूप में मनाया गया

कृषि विज्ञान केन्द्र, डूमरबहार जशपुर में भगवान बलराम जयंती को किसान दिवस के रूप में मनाया गया





दिनांक 29 अगस्त 2025 को कृषि विज्ञान केंद्र डूमरबहार, जिला जशपुर के सेमीनार हॉल में भगवान बलराम जयंती को किसान दिवस कार्यक्रम के रूप में आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित मुनेश्वर केसर, जिलाध्यक्ष, किसान मोर्चा के द्वारा भगवान बलराम के चित्र एवं उनके मुख्य अस्त्र हल के सामने पुष्प समर्पित कर कार्यक्रम का शुरूआत किया गया गया। यह कार्यक्रम छत्तीसगढ़ के सभी जिलों के कृषि विज्ञान केन्द्रों में आयोजित किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि द्वारा जैविक खेती को बढ़ावा देने की बात कहा गया, कार्यक्रम में उपस्थित कृषकों को अपना 10-15 साल पूर्व जिस तरह से खेती करते थे तथा वर्तमान में जो खेती के तरीके अपनाएं हैं यह बात सभी कृषकों के सामने विस्तार से बताये साथ ही उनके द्वारा प्राकृतिक/जैविक खेती को अपनाते हुए रासायनिक खेती न करने की सलाह भी दी। तत्पश्चात् भारतीय किसान संघ के जिला अध्यक्ष नरेश यादव ने भारतीय किसान संघ ने अपने उद्बोधन में कहा कि भगवान् बलराम को कृषि और शक्ति का प्रतीक माना जाता है। वे कृषकों के संरक्षक और ग्रामीण जीवन के प्रेरणास्रोत हैं। आज के बदलते कृषि परिदृश्य में किसानों के सामने उत्पादन लागत बढ़ने और मृदा उर्वरता घटने जैसी चुनौतियाँ हैं। ऐसे समय में प्राकृतिक खेती और गौ आधारित कृषि पद्धति ही समाधान है। उन्होंने किसानों से अपील की कि वे जैविक एवं देशी उपायों को अपनाकर खेती की लागत घटाएँ और आय बढ़ाएँ।

उद्यान विभाग से एक्का उद्यानिकी क्षेत्र में प्राकृतिक खेती की संभावनाओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि किसान तिलहन आधारित बहुफसली प्रणाली तथा फल-सब्जी उत्पादन को जोड़कर अपनी आमदनी को दोगुना कर सकते हैं।

कार्यक्रम में उपस्थित कृषक मोती बंजारा ने बताया कि मैं कृषि विज्ञान केंद्र में 2010 से जुड़ा हूं और कृषि वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन में श्रीविधि और जैविक खेती करते आ रहा हूं, साथ ही जब से मैं केवीके से जुड़ कर कृषि वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन में जैविक खेती करना शुरू किया हूं तब से जैविक खेती और रासायनिक खेती से मुझे बहुत ही ज्यादा अंतर देखने को मिला है, रासायनिक खेती से जहा जमीन से लेकर पर्यावरण और मानव जीवन एवम पशु पक्षी में भी नुकसान तो बहुत हैं पर जैविक खेती से लाभ बहुत हैं, जैविक खेती से फ़सल उत्पादन से कोई कमी नहीं होता बल्कि कृषि वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन में अगर हम खेती करते हैं तो निश्चित ही उत्पादन में बढ़ोतरी तो होता ही है साथ ही, जैविक खेती करने से हमारे ऊपज में रासायनिक खेती की अपेक्षा ज्यादा क्वालिटी रहता है, रासायनिक खाद से तैयार टमाटर हरी मिर्च या साग भाजी को हम मुश्किल से 3 से 4 रख सकते हैं या फ्रिज में ज्यादा से ज्यादा 1 सप्ताह फ्रिज में रख सकते है जबकि जैविक खाद से तैयार फ़सल को हम बिना किसी फ्रिज के लगभग 20 दिन से एक माह से अधिक समय तक रख सकते हैं, मैं इस कार्यक्रम के माध्यम से सभी किसान भाई बहनों से निवेदन करता हूं की ज्यादा से ज्यादा प्राकृतिक एवं जैविक खेती को अपनाए और हर समय अपने कृषि वैज्ञानिकों का मागदर्शन लेते रहे।

इस अवसर पर किसानों ने भी अपने अनुभव साझा किए और गौ-आधारित खेती, तिलहन उत्पादन तथा प्राकृतिक खेती के व्यावहारिक पहलुओं पर चर्चा की। किसानों ने बताया कि यदि उन्हें प्रशिक्षण और बाज़ार से जुड़ी सुविधाएँ उपलब्ध हों तो वे रसायन आधारित खेती से हटकर प्राकृतिक पद्धति को अपनाने के लिए तैयार हैं।

 इस दौरान जिले के उत्कृष्ठ कृषकों को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया जिसमें कृषक - मोती बंजारा, बिच्छीकानी, कमलेश्वर साय, चेटबा, बसंत यादव, ढुढरूडांड एवं प्रेमसागर सिंह, लुड़ेग रहे। कार्यक्रम मंे 61 कृषक सहित कृषि विज्ञान केन्द्र जशपुर के अधिकारी/कर्मचारी उपस्थित रहे।

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