माता के विभिन्न रुपों में एक सिसरिंगा की बुढ़ी मां का मंदिर

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माता के विभिन्न रुपों में एक सिसरिंगा की बुढ़ी मां का मंदिर

 


माता के विभिन्न रुपों में एक सिसरिंगा की बुढ़ी मां का मंदिर

पत्थलगांव। रायगढ़ जिले के धरमजयगढ़ विकासखण्ड के ग्राम सिसरिंगा मंदिर माता के विभिन्न रुपों में एक रुप बुढ़ी मां के रुप में यहां विराजमन है। माता के इस मंदिर में चैत्र नवरात्रि के पावन पर्व पर कई भक्तों ने मनोकामना ज्योति कलष प्रज्जवलित किये हैं। श्रद्धालुओं की बढ़ती भीड़ इस देवीस्थल की मान्यता देने लगी है। प्राचीन काल से ही देवी के मंदिरों में जवारा बोई जाती थी और अखंड ज्योति कलश प्रज्वलित की जाती थी जो आज भी अनवरत जारी है। ग्रामीणों द्वारा प्रतिदीन यहां माता की सेवा और भजन आदि की जाती है। श्रद्धा के प्रतीक इन स्थलों में सुख, शांति और समृद्धि के लिये भक्त यहां दुर दुर से आते हैं। 

विदित हो कि चैत्र नवरात्रि के लिये नगर तथा आसपास के मंदिरों में तैयारी पूर्ण कर ली गई थी। और सभी जगहों पर नौ दिन माता की अलग-अलग रुपों की आराधना की जा रही है। चैत्र नवरात्रि को सबसे उत्तम माना गया है। वहीं साधकों के लिये भी सिद्धी देने वाला माना जाता है।  29 मार्च से प्रारंभ हुये चैत्र नवरात्रि में सिसरिंगा का यह मंदिर आस्था का प्रतिक बना हुआ है। यहां नलवरात्रि के दिनों में माता के भक्तों की भीड़ लगी रहती है और मां भगवती के चरणों में श्रद्धालु मत्था टेकने पहुंचने लगे हैं। इस मंदिर में पूरे विधि विधान से देवी के नौ रुपों का पूजा अर्चना हो रहा है। और भक्तों के द्वारा यहां कई आस्था के दीप जलाये गये हैं। पुराणों के अनुसार इन नौ दिनों तक माता के नौ रुपों का उपासना नियम एवं संयम से किया जाये तो इससे न सिर्फ इच्छित फल की प्राप्ति होती है बल्कि जीवन में आने वाले संकटों से भी मुक्ति मिलती है। माता के नौ रुपों की अराधना अलग-अलग दिनों में अलग-अलग ढंग से करने का विधान है। नियम और संयमपूर्वक से की जाने वाली आराधना का प्रतिफल कभी निष्फल नही होता। यही कारण है की प्रत्येक व्यक्ति को यथाशक्ति हर मानव को नवरात्रि में उपासना करनी चाहिये। शैलपुत्री सम्पूर्ण जड़ पदार्थ भगवती का पहला स्वरूप हैं पत्थर मिटटी जल वायु अग्नि आकाश सब शैल पुत्री का प्रथम रूप हैं। इस पूजन का अर्थ है प्रत्येक जड़ पदार्थ में परमात्मा को महसूस करना। ब्रह्मचारिणी जड़ में ज्ञान का प्रस्फुरण, चेतना का संचार भगवती के दूसरे रूप का प्रादुर्भाव है। जड़ चेतन का संयोग है। प्रत्येक अंकुरण में इसे देख सकते हैं। चंद्रघंटा भगवती का तीसरा रूप है यहाँ जीव में वाणी प्रकट होती है जिसकी अंतिम परिणिति मनुष्य में बैखरी (वाणी) है। कुष्मांडा अर्थात अंडे को धारण करने वालीय स्त्री ओर पुरुष की गर्भधारण, गर्भाधान शक्ति है जो भगवती की ही शक्ति है, जिसे समस्त प्राणीमात्र में देखा जा सकता है। स्कन्दमाता पुत्रवती माता-पिता का स्वरूप है अथवा प्रत्येक पुत्रवान माता-पिता स्कन्द माता के रूप हैं। कात्यायनी के रूप में वही भगवती कन्या की माता-पिता हैं। यह देवी का छटा स्वरुप है। कालरात्रि देवी भगवती का सातवां रूप है जिससे सब जड़ चेतन मृत्यु को प्राप्त होते हैं ओर मृत्यु के समय सब प्राणियों को इस स्वरूप का अनुभव होता है। भगवती के इन सात स्वरूपों के दर्शन सबको प्रत्यक्ष सुलभ होते हैं परन्तु आठवां ओर नौवां स्वरूप सुलभ नहीं है। महागौरी का आठवां स्वरूप गौर वर्ण है। यह ज्ञान अथवा बोध का प्रतीक है। सिद्धिरात्रि देवी जिसे जन्म जन्मांतर की साधना से पाया जा सकता है। इसे प्राप्त कर साधक परम सिद्ध हो जाता है। इसलिए इसे सिद्धिदात्री कहा है। पत्थलगांव के युवा संजय तिवारी एवं विवेक तिवारी इस मंदिर को आस्था का प्रतीक बताया और बताया कि इस मंदिर में जो भी भक्त अपनी समस्या एवं कष्टों को सच्चे व अच्छे मन से लेकर आते हैं मातारानी उनका सभी समस्या एवं कष्टों को हर लेती है और अपने भक्तों पर हमेषा अपनी कृपा बनाये रहती है।  

कंवर समाज ने कराई थी मंदिर का निर्माण

सिसरिंगा के इस मंदिर के पूर्व की जानकारी देते हुये मंदिर के पूजारी नरसिंह राठिया ने बताया कि पूर्व में कंवर समाज के लोगों का बारात आ रहा था तब रास्ते पर एक नवजात पड़ी हुई थी। उस कन्या को रोता देख जब उसे उठाने पहुंचे तो वह कन्या देवी के रुप में प्रकट हो गई। और उस समाज के लोगों को कहा कि मेरा निवास यहां बनवा दो मैं यहीं रहना चाहती हूं। तभी उस समाज के द्वारा यहां मंदिर का निर्माण कराया गया। यह मंदिर कल्चुरी राजा के समय में इसका निर्माण कराया गया था। इस मंदिर में विराजमान माता को चंद्रपुर, नाथलदाई, बंजारी एवं अम्बेटिकरा की मां की बड़ी बहन के रुपे में पुजा जाता है।   पुजारी ने बताया कि माता का असल मंदिर तो पहाड़ उपर है परन्तु रास्ता नही होने के कारण उनका प्रतिरुप को यहां स्थापित किया गया है जिसे भक्तों द्वारा पुजा अर्चना किया जाता है। उन्होने बताया कि पहाड़ के उपर माता की सवारी शेर का पदचिन्ह एक पत्थर के उपर अंकित है। उन्होने बताया कि जंगल के पहाड़ पर एक शेर का गुफा स्थित और आज भी कभी-कभी शेर को देखा जाता है। इतना ही नही वह अचानक ही किसी को बिना नुकसान पहुंचाये नजरों से ओझल भी हो जाता है। बताया जाता है कि किसी के मन में कोई पाप हो तो शेर के द्वारा उस व्यक्ति को नुकसान भी पहुंचाया जा सकता है। परन्तु आज तक ऐसी कोई घटना घटित नही हुई है। उन्होने बताया कि इस मंदिर के प्रथम पुजारी रामगोपाल बाबा थे उसके पष्चात् सोनागिरि मां ने इस मंदिर की पूजा अर्चना की इसके पष्चात जीतन राठिया ने इस मंदिर का देखभाल एवं पूजा अर्चना चालू किया और आज करीब सौ सालों से हमारे द्वारा ही माता के मंदिर का देखभाल एवं पूजा अर्चना किया जा रहा है। उन्होने बताया कि माता के इस मंदिर को वन देवी के नाम से भी जाना जाता है।   

यह भी है यहां का रहस्य

भारत में हर धार्मिक स्थान अपने आप में एक रहस्य समेटे हुये हैं इसी तरह धरमजयगढ़ विकासखण्ड के ग्राम सिसरिंगा स्थित मां के मंदिर का रहस्य यहां के स्थानीय जानकारों ने बताया कि  यहां के बगधरा जंगल में माता कन्या के रुप में वास करती है। और हमारे गांव की रक्षा करती है। इस जीता जागता उदाहरण यह है कि इस जंगल में एक कुआं है और उस कुऐं का पानी अगर षिषु को जन्म देने वाली मां सात दिनो से पहले अगर छु लेती है तो उसके साथ कुछ न कुछ रुप से अनहोनी हो जाती है। आज भी इस क्षेत्र की गर्भवती महिलाओं को गर्भपात होने व नियमों को पालन करने के बाद ही गांव में प्रवेष कराया जाता है। यहां माता को वन देवी के रुप में पुजा जाता है।

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