एक तहसीलदार ऐसा भी पहले जनभागीदारी से शासकीय भूमि पर सड़क बनाने आदेश देती है, कुछ दिनों बाद वही तहसीलदार सड़क से मिट्टी हटाने देती है आदेश, क्या कोई तहसीलदार एक ही मामले में दो अलग अलग आदेश कर सकता है.?
अपना हक अधिकार मांगने कुछ मोहल्ले वासी उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटायेंगे
पत्थलगांव--/बागबहार तहसील अंतर्गत एक अजीबोगरीब गरीब मामला सामने आया है जिसमे तहसील अंतर्गत ग्राम जामझोर के लगभग 45 घरों की बस्ती महकूल पारा में आजादी से लेकर आज तक बस्ती में जाने हेतु कोई सड़क नही बना जबकि उक्त मोहल्ले में शासन ने आंगनबाड़ी केन्द्र जरूर खोल दिया परन्तु आवागमन की सुविधा नही दी जिससे मोहल्ले के लोग तथा अन्य महकुल पारा आने जाने हेतु एक निजी व्यक्ति के मेड़ पर बने पकडण्डी मार्ग से ही आने जाने मजबूर है वही इस पगडंडी मार्ग को लेकर भी भूमि मालिक एवं मोहल्ले के लोगो से रास्ते को लेकर अनेको बार उन्हें विवाद का सामना करना पड़ा।अंततः मोहल्ले वासी पुनः प्रशासन के समक्ष अपनी फरियाद लेकर पहुचे और पगडंडी रास्ते के बगल में शासकीय भूमि पर बस्ती वालो के श्रमदान से शासकीय भूमि की नाप जोख कर सड़क निर्माण हेतु भूमि देने मांग किया गया और कहा गया कि शासन शासकीय भूमि पर सड़क बनाने अनुमति देती है तो मोहल्ले वाले स्वयं श्रमदान व चंदा कर कच्ची मिट्टी के सड़क का निर्माण करेगा जिसकी लम्बाई लगभग 80 मीटर होगी। मोहल्ले वासियो के निवेदन पर पत्थलगांव के एसडीएम आर एस लाल ने मौका का निरीक्षण कर भूमि का सीमांकन कराकर कच्ची सड़क हेतु भूमि देने तहसीलदार बागबहार को लिखित आदेश दिया गया। एस डी एम के आदेश पर बागबहार तहसीलदार ने मौका निरीक्षण कर आर आई पटवारी को सीमांकन करने निर्देशित कर आर आई प्रतिवेदन पर मोहल्ले वासियो को सड़क बनाने निर्देशित किया गया यही नही बेजा कब्जा धारियों द्वारा विवाद की स्थिति निर्मित ना हो को दृष्टिगत रखते हुवे बकायदा पुलिस प्रोटक्शन दिया गया जिसपर मोहल्ले वासियो ने मुख्य मार्ग से महकुल पारा मोहल्ले तक श्रमदान कर लगभग 80 मीटर कच्ची मिट्टी का सड़क निर्माण कराया किन्तु अब पुनः मुरमी करण करने के पूर्व उक्त मोहल्ले वासियो की मेहनत को ग्रहण लग गया और फिर से राजनीति होने लगी जिससे जिस तहसीलदार ने पहले सड़क निर्माण करने आदेश दिया था अब वही तहसीलदार उक्त निर्माण में स्टे लगाते हुवे सड़क से मिट्टी हटाने का आदेश जारी किया है, तो क्या एक ही तहसीलदार एक ही मामले में दो प्रकार का आदेश कर सकती है? जो मोहल्ले वासियो के गले से नीचे नही उतर रही यानी उच्च अधिकारियों के समक्ष अब अपील की कोई आवश्यकता नही..? जबकि जानकारों का कहना है कि एक न्यायालय एक ही आदेश कर सकती है उसे ही दो प्रकार का आदेश करने का स्टे देने का अधिकार नही है उसके लिये उससे ऊपर वरिष्ठ न्यायालय के समक्ष अपील करने का अधिकार दिया गया है अन्यथा कानून से लोगो का विश्वास मिटने लग जायेगा।
बागबहार तहसील न्यायालय द्वारा जारी एक ही मामले में दो प्रकार के आदेश का मामला इस प्रकार है जिसमे सर्व प्रथम कार्यालय अनुविभागीय अधिकारी राजस्व पत्थलगांव द्वारा दिनांक 10,8,2022 को पत्र क्रमांक 1099 /वाचक-1 / 2022 को दिये गये आदेश में ग्राम जमझोर के शासकीय आबादी भूमि ख न 608/2 रकबा 0.510 हे के कुछ भाग पर ग्रामीण सड़क निर्माण हेतु प्रस्तावित है जिसमे 0.040 हे पर भुवन यादव द्वारा अनाधिकृत रूप से कब्जा किया गया है जिसका नियमानुसार जांच कर अतिक्रमण हटवाकर सड़क निर्माण में बाधा हटवाकर पालन प्रतिवेदन पतस्तुत करे। एस डी एम के आदेश पर बागबहार तहसीलदार ने दिनांक 5,4,2023 को अपने पत्र क्रमांक 38 /वाचक/ 2023 को कोतबा थाना चौकी प्रभारी को पत्र जारी कर उक्त सड़क निर्माण में शांति भंग ना हो कि ध्यान रखते हुवे सड़क निर्माण में किसी प्रकार का बाधा उतपन्न न हो के लिये दो पुलिस बल प्रदाय करने आदेश करती है और यहा तक आदेश दिया जाता है कि पूरेन्द्र यादव द्वारा किसी प्रकार की शांति भंग करने पर उनके विरुद्ध दंडात्मक कार्यवाही की जावे।
अब वही बागबहार तहसीलदार के समक्ष ना जाने कौन सा दबाव आता है किसी राजनीतिक नेता दबाव आता है या किसी चढ़ावे का दबाव आता है कि वही तहसीलदार द्वारा पहले दिनांक 10,4,2023 को उक्त निर्माणाधीन सड़क निर्माण पर रोक लगाने आदेश देती हैं फिर दिनांक 6,6,2023 को अपने पत्र क्रमांक 322/ वाचक/ 2023 के तहत ग्राम के पंच कैलाश यादव को नोटिस जारी कर पांच दिवस के अंदर सड़क निर्माण के मिट्टी को हटाने का आदेश दिया जाता है।इस प्रकारके एक ही न्यायालय द्वारा दो प्रकार के आदेश पर मोहल्ले वासी हतप्रभ रह गये है और उनका कहना है कि जो कार्य आजादी के बाद से शासन प्रशासन को करना चाहिये उक्त कार्य को प्रशासनिक अधिकारी के निर्देश पर श्रम दान कर सड़क बनाया जा रहा है इसके बाद पुनः मिट्टी हटाने का आदेश दिया जाता है यह कहा तक न्यायोचित है, तो क्या अब महकूल पारा के मोहल्ले वासी पीढ़ी दर पीढ़ी टापू में ही वास करेंगे उन्हें कोई सुख सुविधा नही मिलेगी। वही कुछ ग्रामवासी अब अपने अधिकार के लिये उच्च न्यायालय जाने अधिवक्ताओं से सलाह मशविरा कर रहे है।