जीवन से जुड़ी लूडो की सांप सीढ़ी की कहानी, कभी बढ़ाती तो कभी गिराती लोगों की जिन्दगानी, हमे हमेशा सिखाती चलते रहना, राजा हो या रंक समय कब अपना मिजाज बदल देता है ये कोई नही जान पाता

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जीवन से जुड़ी लूडो की सांप सीढ़ी की कहानी, कभी बढ़ाती तो कभी गिराती लोगों की जिन्दगानी, हमे हमेशा सिखाती चलते रहना, राजा हो या रंक समय कब अपना मिजाज बदल देता है ये कोई नही जान पाता

जीवन से जुड़ी लूडो की सांप सीढ़ी की कहानी, कभी बढ़ाती तो कभी गिराती लोगों की जिन्दगानी, हमे सिखाती हमेशा चलते रहना, राजा हो या रंक समय कब अपना मिजाज बदल देता ये कोई नही जान पाता



विवेक तिवारी सीजीनमन न्यूज़ पत्थलगांव

जिंदगी में हम लूडो का सांप सीढ़ी खेल रहे तो इस खेल में हम कभी गिरते तो कभी उठते है, पर चलना नही छोड़ते। ठीक उसी तरह हमारे जीवन में भी हमेशा बढ़ते जाना ही सम्भव नही हो पाता, कभी जीत तो कभी हार का सामना करना पड़ता है। हम सब को कोरोना काल ने बहुत कुछ सीखा दिया है, कम में संतुलन, लोगों का सहयोग, तकलीफ कितनी हो। बस यही है – सांप-सीढ़ी का खेल केवल खेलना आना चाहिए। 

हम इस खेल में अक्सर देखते है कि कोई 2 से चढ़ता चला जाता है, और फिर  97 पर जाकर सांप का शिकार होकर ओंधे मुह गिर जाता है। कई बार कम मेहनत में ज्यादा सफलता मिलती है यानि सीढ़ी मिल जाती है, एवं कई बार यह होता है कि तमाम तरह की सीढ़ियां लगाकर जब हम ऊंचाई तक पहुंचते हैं तो वहां पर सांप हमें काट देता है और हम बहुत नीचे आ जाते हैं। उसी प्रकार वक़्त की बस ये आदत है अच्छा कभी किसी का नही रहता है, राजा हो या रंक समय कब अपना मिजाज बदल देता है ये कोई नही जान पाता है। वक़्त के सामने किसी की नही चलती है हर कोई इससे हारे है। इसके उदाहरण भी है जैसे रामायण में राम भगवान के राजतिलक की सम्पूर्ण तैयारी हो चुकी थी पर हुवा वनवास, मुनि वशिष्ठ भी  इनके भाग्य में इस भविष्य को नही बता पाये थे। माता सीता ने चाहा सोने का मृग पर रावण द्वारा हर ली गई। महाभारत काल मे द्रोपदी को नही मालूम था कि उनकी हंसी कितनी महंगी पड़ सकती है उनको भरी सभा मे चिर हरण का शिकार होना पड़ा था। वैसे ही श्रवण कुमार जो कि अपने बूढ़े माता पिता के लिये पानी लेने गया था वो नही जानता था कि उस वक्त उसकी मौत इंतजार कर रही है। वक़्त की चाल अच्छे अच्छे ज्ञानी भी नही समझ पाते, सांप सीढ़ी का ये खेल खेल नही यह जीवन का रहस्य है। इस खेल में सीढ़ी हमारा भाग्य रेखा तो सांप वक़्त है। 

परिस्थिति और परिवेश यदि साथ न दे तो क्‍या हम जीना छोड़ देंगे क्या.? हरगिज नहीं, हमें जीने के लिए लड़ना होगा। कई बार यह लड़ाई अपने आप से लड़नी होगी, कई बार स्‍वजनों से भी लड़नी पड़ सकती है, हममें से किसी को नहीं पता कि आने वाला कल कैसा होगा, कितनी जानें जाएंगी, कितने बेरोजगार हो जाएंगे, जो बेरोजगार हो जाएंगे, क्‍या करेंगे? अपना जीवन यापन कैसे करेंगे? इन सवालों का जवाब किसी के पास नहीं है, सवालों का जवाब न होना हमेशा चिन्‍ता का विषय होता है, जब जवाब नहीं होता तब भविष्‍य अंधकारमय दिखता है। हमने कई किताबें पढ़ी है जिसमे देश विदेश के कई महान वैज्ञानिक, बिजनेस मेन एवम कई कलाकार के जीवनकाल में आई संकट, विप्पति का उल्लेख रहता है, पर वो हारे नही बल्कि उसे चुनौती मानकर मेहनत कर उंस मुकाम को पाया जो जहाँ आज बैठे हैं। 

याद रखें- दुनिया में जब भी किसी ने खोया है तो सोकर खोया है, और जब भी किसी ने पाया है तो जाग कर पाया है। शायद इसलिए बुजुर्ग कहते हैं कि सफलता से अधिक मुश्किल सफलता को संभाल कर रखना है, जिस समय सफल होने पर आपके सिर अश्रद्धा और अहंकार आप को प्रभावित करने लगते हैं समझ लीजिए अगले मुकाम पर ही एक सांप छुपा हुआ है आपको काट कर नीचे उतारने के लिए। इसलिए सफल होने पर सतर्क रहें, सावधान रहें, और विनम्र रहे। तभी आप अपने सिंहासन पर विराजमान रहेंगे।

सांप सीढ़ी के इस खेल को 'मोक्षपट' इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इस खेल के 100वें पायदान पर पहुंचने को मोक्ष मिलने की तरह ही देखा जाता है। इस खेल का सार भी यही है कि जब व्यक्ति अच्छे कर्म करता चला जाता है, तब ही उसे मोक्ष मिल पाता है, वहीं बुरे कर्म करने वाले लोगों की बुराइयां उन्हें सांप की तरह अवनति की ओर ही ले जाती हैं, वे आगे पहुंचकर भी अपनी एक बुराई या गलती की वजह से फिर से नीचे की तरफ लुढ़क जाते हैं और एक बार फिर जीवन की शुरुआत करनी पड़ती है।

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