आपराधिक न्याय प्रणाली अंग्रेजों के बनाये कानूनों के मुताबिक चलती है, अब तीन कानूनों को बदल देश में आपराधिक न्याय प्रणाली में होगा बड़ा बदलाव:- केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह
एजेन्सी दिल्ली। गृह मंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को लोकसभा में राजद्रोह कानून को खत्म करने का भी ऐलान किया है। 1860 से 2023 तक देश के आपराधिक न्याय प्रणाली अंग्रेजों द्वारा बनाये गए क़ानून के अनुसार कार्य करती है, लेकिन अब इसी बदल जायेगा। इन तीनो के ड्राफ्ट बोल लोक सभा मे पेश किये जा चुके है। इन बिलों से अंग्रेजों के समय के इंडियन पीनल कोड (IPC), कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर (CrPC) और एविडेंस एक्ट को रिप्लेस किया जाएगा। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सांसदों को पत्र लिखकर सीआरपीसी आइपीसी और भारतीय साक्ष्य अधिनियम में संशोधनों पर सुझाव आमंत्रित किए हैं। इस सिलसिले में वर्ष 2020 में केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा वैवाहिक दुष्कर्म, भीड़ के द्वारा की जाने वाली हिंसा, इच्छामृत्यु, यौन अपराधों और राजद्रोह जैसे कई गंभीर तथा संवेदनशील अपराधों की परिभाषा पर पुनर्विचार के लिए नेशनल ला यूनिवर्सिटी, दिल्ली के तत्कालीन कुलपति डा. रणवीर सिंह की अध्यक्षता में एक पांच सदस्यीय समिति का गठन किया था। इस समिति ने 49 तरह के अपराधों को पुनर्विचार के लिए चुना है।अब इस सिलसिले में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा देश के प्रधान न्यायाधीश, हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों, राज्यों के मुख्यमंत्रियों, केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासकों, बार काउंसिलों और विधि विश्वविद्यालयों से अपने सुझाव आमंत्रित किया है।
ब्रिटिश शासन के दौरान आपराधिक कानूनी ढांचा भारत पर शासन करने के उद्देश्य से बनाया गया था, न कि नागरिकों की सेवा करने के लिए। आइपीसी यानी इंडियन पीनल कोड, सीआरपीसी यानी कोड आफ क्रिमिनल प्रोसीजर (भारतीय दंड संहिता) तथा भारतीय साक्ष्य अधिनियम के मौलिक सिद्धांत अभी भी ब्रिटिश साम्राज्य के शासन के अनुकूल ही दिखते हैं। वर्तमान में आइपीसी संविधान के बुनियादी मूल्य, जैसे स्वतंत्रता और समानता को सही मायनों में प्रतिबिंबित करने में असमर्थ दिखाई पड़ती हैं। असल में हम जिसे भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली कहते हैं, उसमें बुनियादी तौर पर अदालत, पुलिस और जेल शामिल हैं, और आज यह प्रणाली गहरे संकट में है। देश में होने वाले तथा दर्ज किए गए अपराधों की कुल संख्या में बढ़ोतरी हुई है, जिनका भार न्याय प्रणाली पर पड़ रहा है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के मुताबिक हर साल होने वाली लगभग 60 प्रतिशत गिरफ्तारियां गैर-जरूरी और अनुचित होती हैं, जिसकी मुख्य वजह जमानती न्याय एवं कारावास संबंधी न्याय प्रणाली है। आपराधिक न्याय प्रणाली का उद्देश्य निर्दोषों के अधिकारों की रक्षा करना और दोषियों को दंडित करना था, किंतु आजकल यह प्रणाली आम लोगों के उत्पीडऩ का एक उपकरण बन गई है।
आवश्यक है पुलिस सुधार : आपराधिक न्याय प्रणाली में त्वरित सुधार में पुलिस की व्यवस्था महत्वपूर्ण है। पुलिस सुधार की मांग करने वाले सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों सहित कई प्रयासों के बावजूद, जमीनी वास्तविकता बहुत ज्यादा नहीं बदली है। अत्यधिक कार्यभार के अलावा पुलिस विभाग को जरूरी संसाधनों के अभाव का भी सामना करना पड़ता है। कुछ पुलिस स्टेशनों में पीने का पानी, स्वच्छ शौचालय, परिवहन, पर्याप्त कर्मचारी और नियमित खरीद के लिए धन जैसी आधारभूत सुविधाओं का भी अभाव है। दूसरी ओर पुलिस की छवि आज एक भ्रष्ट और गैर-जिम्मेदार विभाग की बन चुकी है। लोगों में यह आम धारणा बन गई है कि पुलिस प्रशासन सत्ता पक्ष द्वारा नियंत्रित होता है। आम जनता के प्रति पुलिस की जवाबदेही संदिग्ध होने के आरोप भी लगते रहे हैं।
राजद्रोह के प्रावधान खत्म होंगे
अमित शाह ने बताया कि IPC की जगह लेने वाले नए बिल में राजद्रोह के प्रावधानों को पूरी तरह से खत्म कर दिया जाएगा। इसके अलावा मॉब लिंचिंग और नाबालिगों से रेप के मामलों में मौत की सजा देने का प्रावधान किया जाएगा। शाह ने कहा- नए बिल में हमने लक्ष्य रखा है कि कन्विक्शन रेट को 90% से ऊपर लेकर जाना है। इसलिए, हमने प्रावधान किया है कि जिन सैक्शन में 7 साल या उससे ज्यादा की सजा मिलती है, उन मामलों में फॉरेंसिक टीम का क्राइम सीन पर जाना जरूरी होगा।
क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में होगा बड़ा बदलाव: शाह
अमित शाह ने कहा कि 1860 से 2023 तक देश का क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम ब्रिटिश कानूनों के हिसाब से था। इन कानूनों से क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में बड़ा बदलाव होगा। नए कानून नागरिकों के अधिकारों की रक्षा का भाव लेकर आएंगे। इनका उद्देश्य सजा नहीं, बल्कि न्याय देना होगा। सजा अपराध नहीं करने की भावना पैदा करने के लिए दी जाएगी।
इलेक्शन कमिश्नर की अपॉइंटमेंट प्रोसेस से CJI को हटाने के लिए बिल पेश
केंद्र सरकार ने गुरुवार को राज्यसभा में मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और अन्य चुनाव आयुक्तों (ECs) की नियुक्ति को रेगुलेट करने से जुड़ा बिल पेश किया। बिल के मुताबिक आयुक्तों की नियुक्ति तीन सदस्यों का पैनल करेगा। जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष का नेता और कैबिनेट का मंत्री शामिल होंगे। केंद्र सरकार ने अंग्रेजों के द्वारा बनाए गए भारतीय आपराधिक कानूनों में संपूर्ण बदलाव के लिए एक विधेयक पेश किया है। भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को भारतीय न्याय संहिता से बदल दिया जाएगा। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में आज भारतीय दंड संहिता, सीआरपीसी और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को बदलने के लिए तीन विधेयक पेश किया। इसे पेश करते हुए उन्होंने कहा कि ये तीनों कानून अंग्रेजों के द्वारा बनाए गए थे। हम इसे बदल रहे हैं। इसे बदलते हुए नए कानून ला रहे हैं।
अमित शाह ने अपने संबोधन में कहा, "1860 से 2023 तक देश की आपराधिक न्याय प्रणाली अंग्रेजों के बनाए कानूनों के मुताबिक चलती थी। तीन कानूनों को बदल दिया जाएगा और देश में आपराधिक न्याय प्रणाली में बड़ा बदलाव आएगा।"
भारतीय न्याय संहिता, 2023: अपराधों से संबंधित प्रावधानों को समेकित और संशोधित करने के लिए और उससे जुड़े या उसके आकस्मिक मामलों के लिए।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023: दंड प्रक्रिया से संबंधित कानून को समेकित और संशोधित करने और उससे जुड़े या उसके प्रासंगिक मामलों के लिए।
भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023: निष्पक्ष सुनवाई के लिए साक्ष्य के सामान्य नियमों और सिद्धांतों को समेकित करने और प्रदान करने के लिए।