अगर हम किसी लक्ष्य तक पहुंचना चाहते हैं तो उसके लिए लगातार प्रयास करना चाहिए, प्रयास तब तक करना चाहिए, जब तक कि सफलता न मिल जाए:- स्वामी रामकृष्ण परमहंस
जाल में फँसती है तीन तरह की मछलियां, एक जो फंसकर दम तोड़ देती है, दूसरी निकलने का प्रयास करती है, तीसरी जो निकल कर दूर बह चलती है
निरक्षर और पागल तक कहे जाने वाले रामकृष्ण परमहंस ने अपने जीवन से दिखाया था कि धर्म किसी मंदिर, गिरजा, विचारधारा, ग्रंथ या पंथ का बंधक नहीं है।
भारत और दुनियाभर में आध्यात्मिक परंपरा की एक खासियत रही है कि गुरुओं की महानता को दुनिया के सामने लाने का कार्य उनके शिष्यों और बाद के साधकों ने ही किया। जैसे रामानंद के लिए कबीर ने किया। असम में शंकरदेव के लिए माधवदेव ने किया। जैसे यूनान में सुकरात के लिए प्लेटो और ज़ेनोफन ने किया। कुछ-कुछ वैसा ही रामकृष्ण परमहंस के बारे में भी हुआ। आज हम रामकृष्ण परमहंस को जिस रूप में जानते हैं, वह शायद वैसा नहीं होता, यदि केशवचंद्र सेन और विवेकानंद ने दुनिया को उनके जीवन और विचारों के बारे में इस रूप में बताया न होता।
लेकिन असली गुरुओं की यही सहजता, सरलता और गुमनामी ही उनकी महानता होती है. आत्मप्रचार से दूर वे अपनी साधना और मानव सेवा में लगे रहते हैं. रामकृष्ण परमहंस के जीवन को यदि तीन शब्दों में व्यक्त करना हो, तो वे होंगे- त्याग, सेवा और साधना. और यदि दो शब्द और जोड़ने हों तो वे शब्द होंगे- प्रयोग और समन्वय.
परमहंसजी के जीवन से जुड़े कई ऐसे प्रसंग हैं, जिनमें सुखी और सफल जीवन के सूत्र छिपे हैं। यहां जानिए एक ऐसा प्रसंग, जिसमें बताया गया है कि हम अपने लक्ष्य तक कैसे पहुंच सकते हैं...
चर्चित प्रसंग के अनुसार एक बार रामकृष्ण परमहंस अपने शिष्य के साथ टहलते हुए नदी किनारे पहुंचे। किनारे पर उन्होंने देखा कि कुछ मछुआरे मछलियां पकड़ रहे हैं। परमहंसजी ने शिष्य से कहा कि जाल में फंसी इन मछलियों को ध्यान से देखो।
शिष्य देखा जाल में कई मछलियां फंसी हुई थीं। गुरु ने कहा कि इस जाल में तीन तरह की मछलियां हैं। पहली वो जो ये मान चुकी हैं कि अब उनका जीवन समाप्त हो गया है। इस कारण वे प्राण बचाने का प्रयास ही नहीं कर रही हैं। दूसरी मछलियां वे हैं जो बचने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन जाल से बाहर नहीं निकल पा रही हैं। तीसरे प्रकार की मछलियां सबसे खास हैं, जो जाल से बाहर निकलने की कोशिश कर रही हैं। ये मछलियां बाहर निकलने में कामयाब भी हो गई और प्राण बचाकर तैरकर दूर निकल गई हैं।
इसी तरह इंसानों के भी तीन प्रकार हैं। पहले वे लोग हैं, जिन्होंने जो परेशानियों को और दुखों को अपना भाग्य मानकर इन्हीं हालातों में मरने की प्रतिक्षा कर रहे हैं। दूसरे वे लोग हैं, जो दुखों को दूर करने की कोशिश करते हैं, लेकिन उन्हें मुक्ति का कोई मार्ग नहीं मिल पा रहा है। तीसरे वे लोग हैं जो प्रयास भी करते हैं और अपने लक्ष्य तक पहुंचते भी हैं। अगर हम किसी लक्ष्य तक पहुंचना चाहते हैं तो उसके लिए लगातार प्रयास करना चाहिए। प्रयास तब तक करना चाहिए, जब तक कि सफलता न मिल जाए।