पत्थलगांव में प्रकृति उपासना का पर्व करमा बड़े धूमधाम से मनाया गया, ढोल एवं मादर की थाप पर करमा गीत गाती हुई महिलाएं, युवा एवम पुरूष थिरकते हुवे दिखे
पत्थलगांव। पत्थलगांव में प्रकृति उपासना का पर्व करमा धूमधाम से मनाया गया। वहां पर मौजूद महिलाओं ने विधिवत करम डाली की पूजा अर्चना की। उसके बाद ढोल एवं मादर की थाप पर करमा गीत गाती हुई महिलाएं एवम पुरूष पूजा पंडाल में अपने पारम्परिक वेशभूषा में थिरकते हुवे दिखाई दिये। वहीं मंचासीन अतिथियों का इस दौरान फूल माला एवम गुलदस्ता से स्वागत किया गया।
कल शाम पत्थलगांव में बनाए गए करमा पूजा पंडाल में करमा डाली के समक्ष महिलाओं, युवक,युवतियों एवम आगन्तुक अतिथियों की उपस्थिति में लोगों ने विधिवत पूजा-अर्चना की। युवक-युवतियां मांदर की थाप पर थिरकते रहे। यहां भी विधिवत पूजा-अर्चना की गई। नगर में करमा पर्व धूमधाम एवं शांतिपूर्ण माहौल में मनाया गया।देर शाम करम डाली लाने के लिए श्रद्धालु चिन्हित स्थान पर गये और करम डाली लाने के दौरान युवक-युवतियां मांदर की थाप पर थिरकते नजर आए। रातभर करम डाली का पूजा अर्चना किया गया। विदित हो कि आदिवासी उरांव बहुल इलाकों में बड़े धूमधाम के साथ करमा पर्व मनाया जाता है।
बताया जाता है कि यह पर्व बहनें अपने भाइयों के लिए मनाती हैं जो उनके पवित्र संबंध और अटूट प्रेम को दर्शाता है। इस पर्व को खासकर कुंवारी लड़कियां ही मानती हैं । इस पर्व में बहनें अपने भाइयों के सुरक्षा के लिए उपवास रखती हैं, जिन्हें ” करमैती / करमइती ” कहा जाता है । इस पर्व को मनाने के लिए करमैती 3 , 5 ,7 या 9 दिन का उपवास करती हैं तथा बिलकुल सदा भोजन करती हैं ।
सबसे पहले दिन करमैती किसी नदी , तालाब ,या किसी डोभा किनारे से एक बांस के डालिया में ” बालू ” उठाती हैं । इसमें ( कुलथी , चना, जौ, तिल , मकई, उरद , सुरगुंजा ) के बीजों के डालिया में डाल दिया जाता है जो छोटे छोटे पौधों के रूप में उगते हैं जिसे ” जावा ” कहते हैं ।करमैती 3 , 5, 7 अथवा 9 दिन तक जावा को सुबह और शाम में जावा गीत गाकर तथा करम नृत्य कर जगाती हैं ।
दशमी के दिन करम राजा को निमंत्रण देने के लिए जाना पड़ता है। निमंत्रण वही देने जाता है जो उपासक होता है, करम वृक्ष के पूरब तरफ़ के दो चंगी वाले डाली को माला से बांधा जाता है और करम देवता को बोला जाता है कि हमलोग कल ढोल-नगाड़े के साथ आएंगे आपके पास आपको हमारे साथ चलना होगा।
निमंत्रण देने के समय ले जाने वाले डलिया में सिंदूर, बेल पत्ता, गुंड़ी (अरवा चावल को पीसकर बनाया जाता है) सुपारी, संध्या दीया आदि रहता है। एकादशी के दिन सुबह ही सभी लड़कियां (करमइती) फुल लहरने (फूल तोड़ने )के लिए अपने आस-पास के जंगल में चली जाती हैं। फूल, पत्ता, घास, धान इत्यादि जो – जो मिलता है सबको एक नया खांची ( बांस का बना हुआ बड़ा सा टोकरी) में भर देते हैं।