सरकारों के लिए गरीब आदमी एक अवसर और वोट बैंक से अधिक कुछ भी नहीं, इनके लिये बनी योजना दम तोड़ती हुई, अपात्र ले रहे मजा गरीबो की गरीबी बनी सजा

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सरकारों के लिए गरीब आदमी एक अवसर और वोट बैंक से अधिक कुछ भी नहीं, इनके लिये बनी योजना दम तोड़ती हुई, अपात्र ले रहे मजा गरीबो की गरीबी बनी सजा

अधिकारी कर्मचारी के द्वारा गरीबों के उत्थान के लिये बनी कई जनकल्याण योजनाओं में कर रहे फर्जीवाड़ा, किसी की दुकान, किसी की मवेशी दिखा सांठगांठ कर दे रहे सब्सीडी ऋण

सरकारों के लिए गरीब आदमी एक अवसर और वोट बैंक से अधिक कुछ भी नहीं, इनके लिये बनी योजना दम तोड़ती हुई, अपात्र ले रहे मजा गरीबो की गरीबी बनी सजा

रुपया चलता है तो घिसता है, हाथ मे लगता है, जेब मे जाता है, छोटा होता है, रुपया अंतर्ध्यान भी हो सकता है सच होती बातें




विवेक तिवारी सीजीनमन न्यूज़ विशेष

पत्थलगांव। आखिर किसी ने कहा था दिल्ली से गरीबों के लिये भेजा गया 1 रुपया जमीनी हकीकत तक मात्र 19 पैसे ही पहुंचतीं है, क्योंकि रुपया चलता है तो घिसता है, हाथ मे लगता है, जेब मे जाता है, छोटा होता है, रुपया अंतर्ध्यान भी हो सकता है, ये देश की सिक्के की स्थिति अच्छी नही है ये बातें देश के पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी बाजपेयी जी ने अपने एक उद्बोधन के दौरान कही थी। आज ये सब हकीकत होता नजर आ रहा है।  गरीबी में जी रहे  लोगों में उन्हीं की जुबां से बयां करें तो आलम यह है कि शासन द्वारा चलाई जा रहीं गरीबों के उत्थान के लिए कई योजनाओं का लाभ उन्हें वास्तविकता में नहीं मिल रहा।


यदि एक गरीब की नजर से देखें तो गरीबी आपको हर हाल में अभिशाप जैसे लगेगी। लेकिन देश मे सरकारों के लिए गरीब आदमी एक अवसर और वोट बैंक से अधिक कुछ भी नहीं। कई दशक बीत गये गरीबों के नाम पर योजनाएं चलते-चलाते हुए लेकिन न तो इस देश से गरीबी दूर होती है और न ही गरीब के दिन फिरते हैं। पार्टियां आती जाती रहती है पर गरीबी वहीं की वहीं रह जाती है। कई ऐसे भी होते हैं जो पूरी जिंदगी में एक बार ट्रेन पर भी नहीं चढ़ पाते, कई ऐसे भी हैं जिनकी आंखें पूरी जिंदगी होटलों के बिकने वाले आइसक्रीम, मिठाइयां, चॉकलेट्स, पीज्जा-बर्गर देखती रह जाती हैं लेकिन जिंदगी में एक बार भी उन्हें ये चीजें नसीब तक नहीं होतीं। इसके बावजूद जिन लोगों को जरूरत नहीं हैं उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ सांठगांठ कर दिया जा रहा है। ग्रामीण क्षेत्र हो या शहरी क्षेत्र निम्न स्तर के लोग हर जगह निवास करते हैं। पर जिन पात्र लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ प्राप्त होना चाहिये वो उन्हें नहीं मिल पा रहा है।


गरीबों के जन कल्याण के लिए सरकार विभिन्न प्रकार की योजनाएं चलाकर गरीब कल्याण का दावा करती है। लेकिन जिम्मेदार अधिकारी व कर्मचारियों की लापरवाही एवम सांठगांठ के कारण जन कल्याणकारी योजनाओं का लाभ पात्र लोगों तक नहीं पहुंच पाता या इन्हें जानकारी नही रहती। रहने से भी इन्हें कई दफा घुमाया जाता है क्योंकि ये कमीशन नही दे पाते। बल्कि इसका फायदा उच्च वर्ग या कहे जिन्हें जरूरत नही एवम इस योजना के जानकार उठाते नजर आते है और सम्बंधित अधिकारी ही पैसों के लालच में इन्हें पूरा जुगाड़ बताते है, ताकि ये भी फसने से बच सके और किसी को पता नही चल सके। चाहे व्यवसाय चालू करने ऋण हो या पशुपालन के नाम का ऋण हो दोनो में काफी भ्रस्टाचार होता दिखाई दे रहा है। सब्सिडी मिलने के चलते किसी की दुकान हो या किसी की पशुओं को दिखा ये पूरा फर्जीवाड़ा हो रहा है। इसमें अधिकारियों की पूरी मिलीभगत रहती है जिससे सामने वाले को ऋण के साथ सब्सिडी मिल जाती है और सम्बंधित अधिकारी एवम कर्मचारियों को उनका कमीशन। प्राप्त पैसे का उपयोग अन्य कार्य मे लगा कर मुनाफा कमाते नजर आते है, और बकायदा सब्सिडी ऋण का भुगतान किया भी जाता है,ताकि मामला उजागर न हो सके। भला कौन नही चाहेगा कि अधिक लोन लेकर कम ब्याज में कम पैसे देना। ये खेल देखा जाये तो लगभग सभी जिलों में चलता नजर आ रहा है। वही इसके पात्र गरीब तबके के लोग कर्मचारियों की लापरवाही के कारण सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए दर-दर भटकते नजर आते है।

जानकारी के अनुसार केन्द्र हो या प्रदेश सरकार की गरीबो के उत्थान के लिये इतनी योजनायें लागू है जो किसी शासकीय कार्यक्रम एवम किसी बड़े  नेता के आगमन पर केवल दिखाई देता है। बाकी सब फाइलों में दिखाई देती है। जिसका लाभ विभागों के द्वारा अपने चहेतों को पहुंचाते नजर आती है। वही सूत्र बताते है कि ग्रामीण क्षेत्रों के साथ साथ नगरीय क्षेत्रों में भी जिनके पशु नही वो भी कई क्विंटल गोबर एवम गौ मूत्र बेच रहे और उन्हें इसके पैसे भी बकायदा प्राप्त हो रहे है। वही आवास योजना की भी बात करें तो यह योजना बेघर या कच्चे मकान में रहने वालों के लिये था परन्तु इसके ठीक विपरीत जिनके पास बकायदा ऊंची बड़ी भवन या पक्के  भवन होने के बाद भी उन्हें सांठगांठ कर आवस प्रदान किया जा रहा है।  वहीं कई लोगों के असहाय होने के बावजूद उन्हें इसका लाभ भी नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में उन्हें अपना जीवन बसर करने के लिए दर-दर भटकना पड़ता है। जो सरकार के जन कल्याणकारी उद्देश्यों को पलीता लगाने जैसा है। लोगों का कहना है कि ऐसे कई योजनाओं की बारीकी जांच की आवश्यकता है, जिससे कई फर्जीवाड़े सामने आयेंगे। परन्तु ये मुमकिन नही की जांच हो क्योंकि इस भृष्टतंत्र में ऊपर से नीचे तक सब मिले नजर आते है। बाकी सब भगवान भरोसे है। 


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