पत्थलगांव नगर के कारखानों, प्रतिष्ठानों, औजारों, मशीनों और निर्माण कार्यो से जुड़े स्थानों में आज पूजे जायेंगे निर्माण एवं सृजन के देवता भगवान विश्वकर्मा

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पत्थलगांव नगर के कारखानों, प्रतिष्ठानों, औजारों, मशीनों और निर्माण कार्यो से जुड़े स्थानों में आज पूजे जायेंगे निर्माण एवं सृजन के देवता भगवान विश्वकर्मा

पत्थलगांव नगर के कारखानों, प्रतिष्ठानों, औजारों, मशीनों और निर्माण कार्यो से जुड़े स्थानों में आज पूजे जायेंगे निर्माण एवं सृजन के देवता भगवान विश्वकर्मा



आज 17 सितंबर 2023 को विश्वकर्मा जयंती मनाई जाएगी। इस दिन कारखानों, प्रतिष्ठानों, औजारों, मशीनों और निर्माण कार्यो से जुड़े संस्थानों में विशेष पूजा-आराधना की जाती है। पत्थलगांव नगर के कई स्थानों पर इनसे जुड़े लोगों के द्वारा विश्वकर्मा भगवान की प्रतिमा स्थापित की जाती है। इसको लेकर लोगों के द्वारा कई दिनों से इसकी तैयारियां भी की जा रही थी। सनातन धर्म में प्रत्येक कन्या संक्रांति को विश्वकर्मा पूजा की जाती है. इसे विश्वकर्मा दिवस या विश्वकर्मा जयंती भी कहते हैं. हिन्दू धर्म में विश्वकर्मा को निर्माण एवं सृजन का देवता माना जाता है.

ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान विश्वकर्मा ने सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी के सातवें पुत्र के रूप में जन्‍म लिया था. भगवान विश्वकर्मा का जिक्र 12 आदित्यों और ऋग्वेद में होता है. हिंदुओं के लिए ये त्योहार बहुत महत्वपूर्ण होता है. इस दिन लोग अपने कारखानों और वाहनों की पूजा करते हैं.

विश्वकर्मा पूजा का महत्व

भगवान विश्वकर्मा को सृष्टि का पहला इंजीनियर माना जाता है. ऐसा कहते हैं कि विश्वकर्मा पूजा के दिन घर, दुकान या फैक्ट्रियों में लोहे, वाहन और मशीनों की पूजा की जाती है. भगवान विश्वकर्मा की अनुकंपा से ये मशीनें जल्दी खराब नहीं होती हैं. कार्य, कारोबार में उन्नति आती है. भारत के कई हिस्सों में विश्वकर्मा पूजा बड़े ही धूमधाम से मनाई जाती है.

शुभ मुहूर्त

विश्वकर्मा पूजा पर आज भगवान की पूजा के दो शुभ मुहूर्त बन रहे हैं. आज सुबह 7 बजकर 50 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 26 मिनट तक पूजा का मुहूर्त है. इसके बाद दोपहर 1 बजकर 58 मिनट से दोपहर 3 बजकर 30 मिनट तक पूजा का मुहूर्त रहेगा.

कैसे हुई भगवान विश्वकर्मा की उत्पत्ति?

पौराणिक कथा के अनुसार, सृष्टि के प्रारंभ में सर्वप्रथम 'नारायण' अर्थात साक्षात भगवान विष्णु सागर में शेषशय्या पर प्रकट हुए. उनके नाभि-कमल से चर्तुमुख ब्रह्मा दृष्टिगोचर हो रहे थे. ब्रह्मा के पुत्र 'धर्म' और धर्म के पुत्र 'वास्तुदेव' हुए. कहा जाता है कि धर्म की 'वस्तु' नामक स्त्री से उत्पन्न 'वास्तु' सातवें पुत्र थे, जो शिल्पशास्त्र के आदि प्रवर्तक थे. उन्हीं वास्तुदेव की 'अंगिरसी' नामक पत्नी से विश्वकर्मा उत्पन्न हुए. पिता की भांति विश्वकर्मा भी वास्तुकला के अद्वितीय आचार्य बने.

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