चैत्र नवरात्रि आज से प्रारंभ, नवरात्रि के नौ दिनों में माता रानी के भक्त रखते हैं व्रत, नौ दिन बिना कोई मुहूर्त देखे किये जाते है कई शुभ कार्य
हिन्दू नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से प्रारंभ होता है। नए साल को नव संवत्सर भी कहा जाता है। हिन्दू मान्यता है चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को ब्रह्मा जी ने इस सृष्टि की रचना की थी। औऱ सम्राट विक्रमादित्य ने अपने राज्य की स्थापना की थी और हिन्दू कैलेंडर विक्रम संवत को प्रारंभ किया था। इस साल हिन्दू नव वर्ष 9 अप्रैल से प्रारंभ हो रहा है। विक्रमी संवत 2081 चल रहा है।
हिंदू धर्म में नवरात्रि के पर्व को बहुत ही ज्यादा पावन और पवित्र माना जाता है। ये पर्व देशभर में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। नवरात्रि के नौ दिनों में माता रानी के भक्त व्रत रखते हैं और विधि पूर्वक उनकी पूजा करते हैं। इसके अलावा नवरात्रि के ये पावन दिन शुभ कार्यों के लिए बेहद ही उत्तम माने जाते हैं। इन दिनों बिना कोई मुहूर्त देखे कई शुभ कार्य किए जाते हैं।
वहीं आज से शक्ति का स्वरूप माँ दुर्गा की उपासना शुरू हो जाएगी। नवरात्रि के पावन दिन हिन्दू धर्म में काफी महत्वपूर्ण माने जाते हैं।नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। साथ ही लोग अपने घरों में कलश की स्थापना करते हैं और नौ दिनों तक अखंड ज्योति भी जलाते हैं। नवरात्रि का पहला दिन खास होता है। इसी दिन घट स्थापना और कलश स्थापना की जाती है। माँ दुर्गा की विधिवत पूजा करने के लिए घट स्थापना और कलश स्थापित करना जरूरी है।
कलश स्थापना की संपूर्ण विधि
नवरात्रि में घट स्थापना का बड़ा महत्व है। कलश में हल्दी की गांठ, सुपारी, दूर्वा, पांच प्रकार के पत्तों से कलश को सजाया जाता है। कलश के नीचे बालू की वेदी बनाकर जौ बोए जाते हैं। इसके साथ ही दुर्गा सप्तशती व दुर्गा चालीसा का पाठ किया जाता है। सबसे पहले पूजा स्थान की गंगाजल से शुद्धि करें। अब हल्दी से अष्टदल बना लें। कलश स्थापना के लिए मिट्टी के पात्र में मिट्टी डालकर उसमें जौ के बीज बोएं। अब एक मिट्टी या तांबे के लोटे पर रोली से स्वास्तिक बनाएं। लोटे के ऊपरी हिस्से में मौली बांधें। अब इस लोटे में साफ पानी भरकर उसमें कुछ बूंदें गंगाजल की मिलाएं। अब इस कलश के पानी में सिक्का, हल्दी, सुपारी, अक्षत, पान, फूल और इलायची डालें। फिर पांच प्रकार के पत्ते रखें और कलश को ढक दें। इसके बाद लाल चुनरी में नारियल लपेट कलश के ऊपर रख दें।
देवी भागवत के अनुसार दुर्गा ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश के रूप में सृष्टि का सृजन, पालन और संहार करती हैं। भगवान शिव के कहने पर रक्तबीज शुंभ-निशुंभ, मधु-कैटभ आदि दानवों का संहार करने के लिए देवी पार्वती ने असंख्य रूप धारण किए किंतु देवी के प्रमुख नौ रूपों (मां शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री) की पूजा-अर्चना की जाती है।
नवरात्रि का प्रत्येक दिन देवी मां के विशिष्ट रूप को समर्पित होता है और हर स्वरूप की उपासना करने से अलग-अलग प्रकार के मनोरथ पूर्ण होते हैं। शास्त्रों की मान्यता है कि देवी इन नौ दिनों में पृथ्वी पर आकर अपने भक्तों के सभी कष्टों को दूरकर उन्हें सुख-सौभाग्य, विद्या, दीर्घायु प्रदान करती है इसलिए नवरात्रि माता भगवती की साधना का श्रेष्ठ समय होता है। नवरात्रि के नौ दिनों में पांच ज्ञान इन्द्रियां, पांच कर्म इन्द्रियां और एक मन इन ग्यारह को जो संचालित करती हैं वही परम शक्ति हैं जो जीवात्मा, परमात्मा, भूताकाश, चित्ताकाश और चिदाकाश में सर्वव्यापी है। इनकी श्रद्धाभाव से आराधना की जाए तो चारों पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति होती है।